Thursday, July 5, 2012

मैं ढोरो को खगालता हूँ

मैं ढोरो को खगालता हूँ 
कभी इसको तो कभी उसको 
कहाँ सोया है वो राजपूताना शौर्य
एक काल था जब तुमने मात्रभूमि की 
हरियाली को अपने भगवा लहू से सींचा था 
वो सिंह दहाड़ से गौरी,गज़नी तक थर्राया था 
वो रणभूमि में म्लेछ सिरों से मात्रभूमि को पाटा था 
वो चिश्ती ने जब विश्वासघात किया तब 
माँ संयोगिता ने जोहर से सम्मान बचाया था 
वो गौरी के अहं को प्रथ्वी ने जब शब्दभेदी से तोडा था 
वो मेवाड़ी भूखे सिंहो ने खिलजी को नाच नचाया था 
माँ पधमिनी के जोहर ने उसे खाली हाथ लौटाया था 
वो रण के भूखे घायल राणा से बाबर को पसीना आया था 
वो कुम्भलगढ़ ने अकबर को मायूस लौटाया था 
इतिहास पलटता हूँ जब-जब रगों में बिजली कौध जाती है 
पर आज को देखके फफक के आंसू आते है 
जन रक्षक ही भक्षक बन बैठे तू फिर भी सोया है 
बिस्मिल के आंसू देख तू फिर भी खोया है 
म्लेचो ने मात्रभूमि को लूटा तू फिर क्यों कर्तव्य भूला है 
याद नहीं वो दिन जब सेना मुख्यालय से वी के सिंह की 
दहाड़ सुन पूरा विश्व कापा था 
१२१ करोड़ तुझे पुकार रहे फिर तू किस भ्रम में बैठा है ।
जय क्षात्र धर्म ।
जय माँ भवानी ।