Saturday, November 5, 2011

इक सिख बलिदानी युवक अगर पागल ना होता...

इक सिख बलिदानी युवक अगर पागल ना होता...
वो भी किसान बन खेतों मे बस गन्ने बोता...
लेकिन वो पागल था उसने बंदूकें बोई...
उसने सुविधा कोयल की प्यारी कूंके खोई...
फिर देश की खातिर मृत्यु हार पे झूल गया वो...
परिवार, बाप, माता, बहनों को भूल गया वो...
उसके बलिदान की कीमत अभी अधूरी है...
हित राष्ट्र अभी पागलपन बहुत ज़रूरी है...
गर वो बंगाली युवक न होता बौराया सा...
होता अँग्रेज़ों के दफ़्तर मे गर्वाया सा..
क्या वो हिटलर से मिलता, क्या वो फौज बनाता...
वो बस घर मे सुख से रहता और मौज मनाता...
पर वो पागल था अंग्रेज़ो से जंग लड़ा वो....
बस आज़ादी की खातिर हरदम रहा खड़ा वो...
उसकी वो रक्त पुकार अभी क्या पूरी है...
हित राष्ट्र अभी पागलपन बहुत ज़रूरी है...
आज़ाद सदा रहने की कसम उठाई थी जब...
अपने सिर जिसने अपनी गोली खाई थी तब...
थे वहाँ सैकड़ों दुश्मन और वो खड़ा अकेला..
उसकी मृत्यु पर तीर्थ सज़ा वा लगा था मेला...
होता उसका मस्तिष्क यदि यूँ सधा सधा सा...
वो भी रहता परिवार संग तो बँधा बँधा सा...
आज़ादी मे भारत के अब भी दूरी है...
हित राष्ट्र अभी पागलपन बहुत ज़रूरी है...
जेल मे भूखे प्यासे हरदम पड़े रहे जो...
ले परचम आज़ादी का हरदम खड़े रहे जो...
काला पानी का ज़हेर जिन्होने हंस कर चखा...
पर सदा जलाए आज़ादी की ज्योत को रखा...
उनके उस पागलपन की कुछ चिंगारी भर लो...
वास्तव मे आज़ाद देश फिर अपना कर लो...
वो धरती तब जो लाल हुई फिर भूरी है...
हित राष्ट्र अभी पागलपन बहुत ज़रूरी है...
पर बन हिंदू मुस्लिम ना पागल तुम हो जाना...
इस क्षेत्र वाद की दौड़ में अब ना तुम बौराना...
जब पागलपन को सृजन से अपने जोड़ोगे तुम...
जब द्रव्यमोह का दृढ़ ये बंधन तोड़ोगे तुम...
जब पागलपन को लेके मन मे भ्रम ना होगा...
ये शत्रु विरोधी क्रोध कभी जब कम ना होगा...
वो कल्पमुर्ति इस राष्ट्र की तब ही पूरी है...
हित राष्ट्र अभी पागलपन बहुत ज़रूरी है...

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