मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर एक जुट हो रहे है पर कभी भ्रस्टाचार, और पकिस्तान के खिलाफ कभी खुल के एक जुट होकर सामने नहीं आते है। मुस्लिमों को पकिस्तान और बंगलादेश दिया जा चुका है अब उन्हें क्या चाहिए पूरा भारत । क्या माननीय ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब की राय ली है अलीगढ मुस्लिम विश्वविधालय और दारुल उलम , देबबंद ने। आज़ादी से पहले ये दोनों संस्थान एक दूसरे के विरोधी थे आज चोली दामन के साथ की बात करते है। कहाँ है वो मुस्लिम जो बंगाल विभाजन के विरुद्ध सन १९०५ ई. जो हिन्दुओं के साथ सरकार की फूट डालने की कोशिश के विरुद्ध में एक हो गये थे । क्यों जब भी कोई आतंकवादी घटना होती है तो हमेशा मुस्लिम नाम ही सामने आते है । क्या ये देश आपका नहीं है ? इन बातों से सिर्फ यही सिद्ध होता है की वो इस देश को अपना नहीं मानते । क्यों देश के कोई आन्दोलानो में मुस्लिमों की की कोई भागीदारी खुल के सामने नहीं आती है। क्या देश भक्ति का जज्बा उनके अंदर नहीं है वो नहीं चाहते है की भारत में हर धर्म का व्यक्ति बिना भेदभाव के मिल के रहे । क्या इस्लाम देश के लिए और मानवता के लिए कोई फ़र्ज़ निभाने को नहीं बताता है । जब उनकी तलवारे दंगो में दूसरे धर्म के लोगो को मारने के लिए है उठ सकती है तो क्यों ये तलवारे देश के लिए नहीं उठती है क्यों ये तलवारे मानवता की रक्षा के लिए नहीं उठती है।महान सम्राट अकबर भी एक मुस्लिम था ।क्यों सूफी पंथ का विकास नहीं हुआ । मोईनुद्दीन चिस्ती का यही सन्देश था , क्या ? क्यों धर्म की खायी दिन-प्रतिदिन बढ रही है क्यों मुस्लिम युवा धार्मिक एकता के लिए आवाहन नहीं करते। क्यों जब भी देश की बात आती है तो वे औरों से कई कदम पीछे दिखते है । आप एक बार आगे आकर आवाहन तो करो फिर देखना फिर देखना हर धर्म का व्यक्ति आपके साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा होगा ।
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