उत्तर प्रदेश बदल रहा है भारतीय राजनीतिक समीकरण और भविष्य
अभी हाल में ही पांच राज्यों के चुनावी नतीजे घोषित हुए परन्तु इन सब में चुनाव का मक्का उत्तर प्रदेश रहा। क्योकि भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश वो गुलकंद है जिसे खाकर प्रत्येक दिल्ली की सत्ता तक पहुच सकता है। प्राचीन काल से ही ब्राज़ील की आबादी से ज्यादा आबादी (वर्तमान ) वाले इस प्रदेश का इतिहास विशिस्ट रहा है क्योकि जिसने भी गंगा- जमुना के दोआब पर अधिकार किया है उसने भारत पर सफलतापूर्वक राज किया है। इसी प्रदेश ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए है तथा दोनों ही मुख्या राजनीतिक पार्टियों (कांग्रेस तथा वी .जे .पी.) का पोषक स्थान रहा है। पर धीरे-धीरे अब राजनीतिक समीकरण बदलते नज़र आ रहे है। क्योकि न तो नेहरु परिवार के रोड शो में दम दिखी और न ही वी. जे. पी. के राम मंदिर में। दोनों ही पार्टियों में एकीकृत नेतृत्व शक्ति का आभाव है। युवराज़ यथार्थ से परे बातें नज़र करते आये तो वी. जे. पी. वो बस लगी जिसमें सबका अपना-अपना स्टेयरिंग है सबके अपने-अपने रास्ते । अब बची बसपा और सपा, २००७ में जनता गुंडागर्दी से निजात पाने के लिए हाथी पर चढ़ गयी सोचा कुछ नया होगा तो नये के नाम पर एन एच आर एम्, मूर्तियाँ तथा सरकारी गुंडागर्दी मिली ।अब अंत समय में वो साईकिल पर चढ़ गयी अब पांच साल क्या होगा वो समय बताएगा, पर एक बात साफ़ है क्षेत्रीय पार्टियों को स्पष्ट बहुमत के फायदे है तो नुकसान भी बहुत है। सबसे पहले मैं फायदे के बारे में बात करूँगा , उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जहाँ हर १०० किलोमीटर पर लोगो की आवश्यकताएं तथा समस्याएं अलग-अलग है जिनकी जानकारी क्षेत्रीय पार्टियों को रास्ट्रीय पार्टियों से ज्यादा है , दक्षिण में जहाँ बुंदेलखंड पानी की कमी से झूझता है वही पूर्वोत्तर क्षेत्र पानी में डूबा रहता है ,दक्षिण-पूर्व में जहाँ नक्सलवाद है वही उत्तर-पश्चिम में नये विकास के लिए जमीन की कमी। जो इन दुखती रगों को पकड़कर गाना शुरू करता है जनता उसी में अपना भविष्य तलाशती है। सत्ता में आने से पहले ये बातें महत्वपूर्ण होती है तथा सत्ता में आने के बाद आधारहीन, क्योकि समस्या से निबटने तथा विकास करने के लिए, मेहनत करनी होती है और विलासितापूर्ण जीवन त्यागना पड़ता है। जो भी पार्टी इन समस्याओ से निबट कर विकास के रास्ते पर चलेगी उसे ही स्पष्ट बहुमत मिलेगा और चिर स्थायी होगी । पांच साल की मेहनत अगले बीस साल का बीमा देगी । बिहार और गुजरात इसके उदाहरण है। स्पष्ट बहुमत यह सिद्ध करता है है कि जनता चाहती है कि उस पर कोई समर्थ व्यक्ति ही राज करे।
अब बात करते ही स्पष्ट बहुमत से होने वाले नुकसान की। इन क्षेत्रीय पार्टियों से रास्ट्र को फायदा नाम मात्र को परन्तु नुकसान थोक के भाव होता है। अगर इतिहास पर नज़र डाली जाय तो मौर्या वंश (चन्द्रगुप्त से अशोक तक ) तथा मुग़ल वंश (अकबर से औरंगजेब तक ) भारत ने विकास किया है क्योकि इन राजाओ के समय एक केंद्रीय सक्ति स्थापित थी। इनके बाद राजनीतिक अस्थिरता आयी जिसका परिणाम विदेशी आक्रमण हुआ और गौरी , गजनवी और अंग्रेजो ने इसका फायदा उठाया। इससे एक बात साफ़ हो जाती है कि देश के बहुमुखी विकास के लिए राजनीतिक स्थिरता कितनी आवश्यक है। अब बात करते है रास्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों की। रास्ट्रीय मुद्दे वो मसले होते है जो पुरे रास्ट्र से जुड़े होते है और जिनका असर पुरे रास्ट्र पर होता है जैसे विज्ञानं-तकनीकी ,सैन्य क्षमता विकास , आर्थिक उदारीकरण , विदेश नीति इत्यादि । रास्ट्रीय मसलो में थोड़ी सी चुक होने पर पूरे रास्ट्र को खामियाजा भुगतना पड़ता है। क्षेत्रीय मुद्दे वे मसले होते है तो रास्ट्र के किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े होते है जिनकी कुछ अपनी सामाजिक, आर्थिक या अन्य समस्याएं होती है। क्षेत्रीय मुद्दे रास्ट्रीय मुद्दों के लिए अधिक घातक होते है क्योकि क्षेत्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय भावनाओ को भड़काकर रास्ट्रीय मुद्दों से ध्यान खीचती है और यदि केंद्र सरकार क्षेत्रीय पार्टियों के सपोर्ट से चल रही है तो महत्वपूर्ण रास्त्रियो मुद्दों को निबटाने में रोड़ा बनती है तथा रास्ट्रीय अस्थिरता तथा अशांति उत्पन्न करती है जिसकी ताक में सभी दुश्मन देश बैठे रहते है।
उपरोक्क्त बातो से स्पष्ट हो जाता है कि दोनों रास्ट्रीय पार्टियों तथा जनता को बैठ कर सोचना होगा कि हम किस ओर जा रहे है तथा हम अपने बच्चो को कैसा भारत देकर जायेगें ? क्या गौरी,गजनवी या अंग्रेजो फिर दोहराया जाएगा ? क्या चीन का युद्ध फिर दोहराया जाएगा ? क्षेत्रीय पार्टियों को स्पष्ट बहुमत मिलना कुछ इसे ही निकट भविष्य की ओर इशारा कर रहा है ।
Written by -
अजय सिंह
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