Saturday, August 30, 2025

भगवान बुद्ध का जन्म इक्ष्वाकुवंशीय सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ था।

Source- JRASB,1832 & The Life of Buddha, 1931


वर्ष 1832 ई० एशियाटिक सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बती ग्रंथ डुल-वा-झुंग-ला-मा (Dul-va-zhung-la-ma)  में भगवान बुद्ध को अयोध्या के राजा इक्ष्वाकु का वंशज बताया गया है,  डुल-वा-झुंग-ला-मा को संस्कृत में विनय उत्तर ग्रंथ कहते है।

वर्ष 1931 ई० में Edward J Thomas ने अपनी पुस्तक The Life of Buddha as Legend and History में भगवान बुद्ध को विशुद्ध क्षत्रिय कुल का बताया गया है।

वर्ष 1832 ई० एशियाटिक सोसाइटी की रिपोर्ट में भी भगवान बुद्ध को सूर्यवंशी कुल के राजा इक्ष्वाकु का वंशज बताया गया है।

भगवान बुद्ध की पूजा श्रीहरि विष्णु ने नवें अवतार के रूप में होती थी, इस विषय पर शीघ्र ही तथ्यों के साथ नया लेख प्रकाशित किया जाएगा।

Thursday, August 28, 2025

भगवान बुद्ध राजा इच्छवाकु के वंशज थे।


Source- JRASB, 1832


वर्ष 1832 ई० एशियाटिक सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बती ग्रंथ डुल-वा-झुंग-ला-मा (Dul-va-zhung-la-ma) जिसे संस्कृत में विनय उत्तर ग्रंथ कहते है। 


इस तिब्बती ग्रन्थ में शाक्य (गौतम बुद्ध) का उल्लेख है। इस ग्रंथ में गौतम बुद्ध को शाक्य कहा गया है।


इस ग्रंथ में शाक्य अर्थात भगवान बुद्ध को कौशल का निवासी बताया गया है, कौशल देश की सीमा कैलाश पर्वत तक फैली थी।


इसी ग्रंथ में शाक्य अर्थात गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध को राजा इच्छवाकु के वंशज बताया गया है, जिनका जन्म कपिलवस्तु में हुआ था।


वर्तमान में राजा इच्छवाकु के वंशज सूर्यवंशी क्षत्रिय है। राजा इच्छवाकु ही जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ है जिन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है।


Friday, August 15, 2025

बदायूँ का नीलकंठ महादेव मंदिर या जामा मस्जिद।


Source- The Jami Masjid at Badaun and Other Buildings in UP



बदायूँ उत्तर प्रदेश का जिला व शहर है।

 बदायूँ एक प्राचीन स्थान है यह पांडवों से पहले राजा भरत के समय भी अस्तित्व में था।

वर्ष 1907 ई० के बदायूँ गजेटियर के अनुसार बदायूँ का पुराना नाम बुद्धगाँव, बुद्धमउ, वेदामऊ है।

वर्ष 1879 ई० के स्टेटिकल, डिस्क्रप्टिव एंड हिस्टोरिकल एकाउंट ऑफ नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेस, बदायूँ डिस्ट्रिक्ट की अनुसार बदायूँ के बारे में मौलवी मोहम्मद करीम के अनुसार बदायूँ व बदायूँ किले की स्थापना वर्ष 905 ई० में राजा बुद्ध ने की थी। 

वर्ष 1028 ई० में महमूद गजनवी के भतीजे सालार मसूद गाज़ी ने बदायूँ पर आक्रमण किया और युद्ध में सालार मसूद गाज़ी अध्यापक मीरन मल्हन व सेनापति बुरहान कातिल मारे गए जिनके मकबरे बदायूँ में स्थित है।

वर्ष 1175 ई० में बदायूँ में राजा अजयपाल का शासन था। वर्ष 1196 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूँ पर आक्रमण किया।

अगस्त 1887 ई० को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों को बदायूँ किले के दक्षिणी दरवाजे के पास से लखनपाल का शिलालेख मिला।

यह शिलालेख 3 फ़ीट चौड़ा व 1.6 फ़ीट ऊँचा है।

इस शिलालेख में शिव के सम्मान में श्लोक लिखे गए है। इस शिलालेख की भाषा संस्कृत है व लिपि 12वीं-13वीं सदी की देवनागरी है।

लखनपाल का यह शिलालेख 23  पंक्तियों का है जिससे कन्नौज के राष्ट्रकूट वंश की जानकारी मिलती है।  प्रथम पंक्ति से सातवीं पंक्ति के वर्णन को एक सारणी में लिखा जाय तो कन्नौज के राष्ट्रकूट वंश की वंशावली बनती है। 

इस वंशावली के अनुसार चन्द्र के पुत्र विग्रहपाल हुए, विग्रहपाल के भुवनपाल, भुवनपाल के गोपालदेव, गोपालदेव के तीन पुत्र हुए त्रिभुवन व मदनपाल व देवपाल, देवपाल के पुत्र भीमपाल हुए, भीमपाल के सुरपाल, सुरपाल के दो बेटे थे अमृतपाल व लखनपाल। 

यह शिलालेख लखनपाल का है जिनकी वंशावली कन्नौज के राष्ट्रकूट वंश से जुड़ती है। महाराज जयचंद्रदेव के समय लखनपाल बदायूँ के गवर्नर थे, लखनपाल का उल्लेख आल्हा-ऊदल के साथ आता है।

लखनपाल ने बदायूँ में नीलकंठ महादेव के मन्दिर का निर्माण किया, हालाँकि नीलकंठ महादेव मंदिर का उल्लेख राजा बुद्ध व अजयपाल के विवरण में आता है जिससे साबित होता है कि नीलकंठ महादेव मंदिर बहुत प्राचीन है जिसकी देखरेख व विकास लखनपाल ने किया।

वर्ष 1202-1209 ई० के बीच शमशुद्दीन अल्तमश बदायूँ गवर्नर था, जिसने नीलकंठ महादेव मंदिर को तोड़ा और मन्दिर के अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने में किया, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मन्दिर को मस्जिद में परिवर्तित किया।

नीलकंठ महादेव मंदिर के खंभे, नक्काशीदार मूर्तियां, वास्तुशिल्प मस्जिद में देखी जा सकती है आजकल इस मस्जिद को जामा मस्जिद कहते है।

नीलकंठ महादेव मंदिर ( जामा मस्जिद) उत्तर से दक्षिण तक लगभग 280 फीट चौडा और पश्चिमी बाहरी दीवार के सामने से पूर्वी द्वार के सामने तक लगभग 226 फीट लंबी है। इस प्रकार आकार के मामले में यह जौनपुर की इमारतों को टक्कर देती है और भारत की सबसे बड़ी मुसलमान इमारतों में से एक है।

 योजना में यह एक अनियमित समांतर चतुर्भुज है, जो पूर्व की ओर सड़क के पास आते ही चौड़ा होता जाता है। आंतरिक प्रांगण पश्चिम में 176 फीट, पूर्व में 175 फीट, दक्षिण में 99 फीट 6 इंच और उत्तर में 98 फीट चौड़ा है; और केंद्र में लगभग 28 फीट वर्ग का एक टैंक है, जबकि उत्तर-पश्चिम में एक कुआं है। 

प्रांगण के पश्चिम की ओर नीलकंठ महादेव के शिवलिंग का प्रमुख स्थान है जिसे आजकल मुख्य मस्जिद कहते है, जो 75 फीट गहरा है और इमारत की पूरी चौड़ाई में फैली हुई है; यह तीन भागों में विभाजित है, केंद्रीय कक्ष 43 फीट 3 इंच वर्ग का है, जिसकी विशाल दीवारें 16 फीट मोटी हैं और एक बड़े गुंबद से छत बनी है। 

दोनों ओर एक लंबा गुंबददार कक्ष है, जिसका उत्तर में माप 78 फीट x 58 फीट और दक्षिण में 90 फीट x 58 फीट है। प्रत्येक कक्ष चूना पत्थर और ईंट से बने नौ से दस फीट की दूरी पर भारी खंभों द्वारा अनुदैर्ध्य रूप से पाँच खंडों और पार्श्व में चार खंडों में विभाजित है, जो एक बैरल छत को सहारा देते हैं।

 प्रत्येक छोर पर खिड़कियाँ हैं, और पश्चिमी दीवार में ऊपर छोटे-छोटे छिद्रों से भी प्रकाश प्रवेश करता है। केंद्रीय कक्ष आंतरिक रूप से 69 फीट ऊँचा है, लेकिन फर्श से 31 फीट की ऊँचाई पर यह अष्टकोणीय हो जाता है, जिसके किनारे मेहराबदार और धँसे हुए हैं। दीवारें पूर्व, उत्तर और दक्षिण में 18 फीट चौड़े मेहराबदार छिद्रों से छेदी गई हैं, और पश्चिम में एक गहरा मेहराब है, जिसके दोनों ओर दो छोटे नक्काशीदार स्तंभ हैं, जो स्पष्ट रूप से एक पुराने हिंदू मंदिर से लिए गए थे।

 पूर्वी मेहराब अब एक विशाल प्रोपिलॉन द्वारा दृष्टि से छिपा हुआ है, जो गुंबद को भी ढकता है। इसकी ऊँचाई लगभग 52 फीट 4 इंच और चौड़ाई 61 फीट 6 इंच है; बीच में 35 फीट 6 इंच ऊँचा एक बड़ा मेहराब है।

नीलकंठ महादेव मंदिर (कथित जामा मस्जिद) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन एक संरक्षित स्मारक है।

ब्रिटिश सरकार व भारतीय राज्यों के संबंधों की श्रेणी।

Source- JASB, 1833



वर्ष 1833 ई० की एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजों ने भारत के क्षेत्रों को अपनी संधियों के अनुसार 6 भागों में विभाजित किया था।

प्रथम श्रेणी- प्रथम श्रेणी में वो राज्य आते थे जिनके भीतरी व आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार सीधे दखल देती थी। यह राज्य अपने क्षेत्र में आक्रमण व सुरक्षा के लिए अंग्रेजों से माँग कर सकते थे। प्रथम श्रेणी के राज्य थे-


1- ओडे, जिसका क्षेत्रफल 23,923 वर्ग मील था।


2- मैसूर, जिसका क्षेत्रफल 27,999 वर्ग मील था।


3- बेरार या नागपुर, जिसका क्षेत्रफल 56, 723 वर्ग मील था।


4- त्रावणकोर, जिसका क्षेत्रफल 4,574 वर्ग मील था।


5- कोचीन, जिसका क्षेत्रफल 1,988 वर्ग मील था।


दूसरी श्रेणी- दूसरी श्रेणी में वह राज्य आते थे जिनके आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार दखलंदाजी नहीं दे सकती थी किंतु अपने हितों के संबंध में दे सकती थी, यह राज्य भीतरी व बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार पर निर्भर थे। यह राज्य थे-


1-हैदराबाद, जिसका क्षेत्रफल 88, 884 वर्ग मील था।


2- बड़ोदा, जिसका क्षेत्रफल 24, 950 वर्ग मील था।

Source- JASB,1833


तृतीय श्रेणी- तृतीय श्रेणी में वह राज्य थे जोकि अपने राज्य में सुप्रीम थे जिनके किसी कार्य में ब्रिटिश सरकार की दखलंदाजी नहीं थी, ब्रिटिश सरकार ऐसे राज्यों के साथ एक सहायक के रूप में थी। यह राज्य थे-


1- इंदौर, जिसका क्षेत्रफल 4,245 वर्ग मील था।


2- उदयपुर, जिसका क्षेत्रफल 11,784 वर्ग मील था।


3- जयपुर, जिसका क्षेत्रफल 13, 427 वर्ग मील था।


4- जोधपुर, जिसका क्षेत्रफल 34, 132 वर्ग मील था।


5- कोटा, जिसका क्षेत्रफल 4, 389 वर्ग मील था।


6- बूंदी, जिसका क्षेत्रफल 2,291 वर्ग मील था।


7- अलवर, जिसका क्षेत्रफल 3,235 वर्ग मील था।


8- बीकानेर, जिसका क्षेत्रफल 18, 060 वर्ग मील था।


9-  जैसलमेर, जिसका क्षेत्रफल 9,779 वर्ग मील था।


10- किशनगढ़, जिसका क्षेत्रफल 724 वर्ग मील था।


11- बांसवाड़ा, जिसका क्षेत्रफल 1,449 वर्ग मील था।


12- प्रतापगढ़, जिसका क्षेत्रफ़ल 1,457 वर्ग मील था।


13- डूंगरपुर, जिसका क्षेत्रफ़ल 2,005 वर्ग मील था।


14- करौली, जिसका क्षेत्रफल 1,878 वर्ग मील था।


15- सिरोही, जिसका क्षेत्रफल 3,024 वर्ग मील था।


16- भरतपुर, जिसका क्षेत्रफल 1,946 वर्ग मील था।


17-  भोपाल, जिसका क्षेत्रफल 6,772 वर्ग मील था।


18- कच्छ, जिसका क्षेत्रफल 7,396 वर्ग मील था।


19- धार व देवास, जिसका क्षेत्रफल 1,466 वर्ग मील था।


20- धौलपुर, जिसका क्षेत्रफल 1,626 वर्ग मील था।


21- रीवा, जिसका क्षेत्रफल 10, 310 वर्ग मील था।


22- दतिया, झांसी, तेरही जिसका क्षेत्रफल 16, 173 वर्ग मील था।


23- सावंतवाड़ी, जिसका क्षेत्रफ़ल 935 वर्ग मील था।


चतुर्थ श्रेणी- चतुर्थ श्रेणी में वह राज्य था जोकि अपने क्षेत्र में सुप्रीम थे जिन्हें सुरक्षा की गारंटी थी वह राज्य थे-


1- अमीर खान- (टोंक,सिरोंज,निम्बाहरा) जिसका क्षेत्रफल 1,633 वर्ग मील था।


2- पटियाला, कैटल, नाबा, जींद जिसका क्षेत्रफल 16, 602 वर्गमील था।


पंचम श्रेणी- पंचम श्रेणी में वह राज्य था जिनसे मित्रता थी, वह राज्य थे-


1- ग्वालियर, जिसका क्षेत्रफल 32,944 वर्ग मील था।

Source- JASB, 1833


षष्ठम श्रेणी- षष्ठम श्रेणी में वह राज्य थे, जिसकी सुरक्षा और आंतरिक मामलों पर पूरा नियंत्रण ब्रिटिश सरकार का था। यह राज्य थे- 


1- सतारा, जिसका क्षेत्रफल 7,943 वर्ग मील था।


2- कोल्हापुर, जिसका क्षेत्रफल 3,184 वर्ग मील था।


इस क्षेत्रों में हैदराबाद, ओडे, भोपाल व टोंक मुस्लिम शासित राज्य थे। 


सतारा, ग्वालियर, नागपुर, इंदौर, बंडा, कोल्हापुर, धार व देवास मराठा राज्य थे।


उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, बूंदी, कोटा, कच्छ, अलवर, बीकानेर, जैसलमेर, किशनगढ़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, करौली, सिरोही, रीवा, दतिया, झांसी, तेरही राजपूत राज्य थे।


मैसूर, भरतपुर, त्रावणकोर, सावंतवाड़ी, कोचीन, धौलपुर अन्य हिन्दू जातियों द्वारा शासित राज्य थे।


छोटा नागपुर, सिरगुज़र, संभलपुर, सिंहभूम, उदीपुर, मणिपुर, तंजोर, फिरोजपुर, मरीच, संगाओं, नेपानी, अकुलकोटे, सागर,नर्बुड्डा, सिक्किम अन्य राज्य थे।


ब्रिटिश सरकार व भारतीय राज्यों के व्यापारिक, राजनीतिक संबधों व संधियों के संबंध में तत्कालीन परिस्थितियों पर एक व्यापक निष्पक्ष अन्वेषण आवश्यक है।

Thursday, August 14, 2025

कन्नौज की जामा मस्जिद है सीता रसोई मंदिर।

Source- Statical, Description and Historical Account of the N-W Provinces, Farrukhabad District 



स्टेटिकल, डिस्क्रप्टिव एंड हिस्टोरिकल एकाउंट ऑफ द नार्थ-वेस्ट प्रोविन्सेस, फर्रुखाबाद डिस्ट्रिक्ट  के अनुसार कन्नौज के पुराने किले के बीच में स्थित  जामा मस्जिद मूल रूप से हिन्दू मन्दिर सीता रसोई मन्दिर है।

दरअसल पूर्वकाल में प्रभु श्रीराम के मन्दिरों को सीता रसोई मन्दिर कहा जाता था, इन मन्दिरों में तीन गुम्बद होते थे जिनमें प्रत्येक के नीचे भगवान के विग्रह को प्राण प्रतिष्ठित करने का स्थान होता था जो आज भी विद्यमान है।

इस एकाउंट के अनुसार सीता रसोई मन्दिर कन्नौज के पुराने किले के बीचोबीच एक टीले पर स्थित है। यह एक हिन्दू संरचना है जिसका मुस्लिम पूजा के लिए पुनर्विन्यास किया गया है।

जिसप्रकार कन्नौज के सीता सीता रसोई को मस्जिद में परिवर्तित किया गया ठीक उसी प्रकार जौनपुर के सीता रसोई मन्दिर को मस्जिद में परिवर्तित किया गया था। जौनपुर के सीता रसोई मन्दिर को आजकल जामा मस्जिद या बड़ी मस्जिद कहते है। ठीक इसीप्रकार अजमेर, बनारस,बदायूं, इटावा और जौनपुर के मन्दिरों को मस्जिद में परिवर्तित किया गया है।

ASI के प्रथम महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार वर्ष 1857 ई० से पहले एक मुस्लिम तहसीलदार द्वारा कन्नौज के सीता रसोई मन्दिर के हिन्दू चिन्हों व प्रमाणों को नष्ट किया गया था।

 कनिंघम ने जामा मस्जिद की दीवारों पर सीता रसोई मन्दिर के अवशेष देखे। जामा मस्जिद के खंभों में हिन्दू शिल्पकला स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

जामा मस्जिद खंभों के कमरों की बनी है जिसकी लंबाई 108 फ़ीट व चौड़ाई 26 फ़ीट है, जिसमें खम्भों की चार कतारें है, इसके सामने 95 फ़ीट चौड़ाई का एक खुला स्थान है जोकि 6 फ़ीट मोती दीवार से घिरा हुआ है।

बदायूँ की जामा मस्जिद मूल रूप से नीलकंठ महादेव मंदिर है, इटावा जामा मस्जिद मूल रूप से महेश्वर मन्दिर है, जौनपुर की अटाला मस्जिद मूल रूप से अटाला माता मंदिर है, जामा मस्जिद या बड़ी मस्जिद मूल रूप से सीता रसोई मन्दिर है।

ऐसे न जाने कितने अनगिनत मंदिर/दरगाह है जिनमें इतिहास दबा है जिनकी शिल्पकला हिन्दू शिल्पकला है जिनका उपयोग उनकी मूल प्रकृति के विरूद्ध हो रहा है। 

Tuesday, August 12, 2025

गाजीउद्दीन खान और मराठों ने मिलकर नजीबुद्दौला को खदेड़ा और आगरा पर मराठों का 4 वर्ष का छोटा कार्यकाल।


Source- History and Administration of the N-W Provinces, 1803-1858


हिस्ट्री एंड एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ नार्थ-वेस्ट प्रोविन्सेस 1803-1858 की रिपोर्ट के अनुसार मार्च वर्ष 1757 ई० में अहमद शाह अब्दाली भारत से जब लौटा तो उसने नजीबुद्दौला को अपने अधीन भारत भारत का शासन सौंप दिया।


अब्दाली का यह कार्य गाजीउद्दीन खान इमाद उलमुल्क को पसंद नहीं आया, उसने मराठों को नजीबुद्दौला के विरुद्ध मिलकर लड़ने का आमंत्रण भेजा।


मराठों की तरफ से मल्हार राव होल्कर गाजीउद्दीन खान के साथ लड़े और नजीबुद्दौला को खदेड़ दिया, जिसके बाद दिल्ली और आगरा का क्षेत्र गाजीउद्दीन खान और मराठों के पास आ गया।


मई 1757 ई० में आगरा मराठों के पास आ गया जोकि पानीपत के तीसरे युद्ध तक मराठों के पास रहा। पानीपत के तीसरे युद्ध में हार के बाद मराठे वापस दक्षिण तक सिमट गए। आगरा पर मराठों के 4 वर्ष के छोटे कार्यकाल का उल्लेख मिलता है।


पानीपत का तीसरा युद्ध 17 जनवरी वर्ष 1761 ई० को लड़ा गया था, इसप्रकार आगरा पर मई 1757 से जनवरी 1761 तक लगभग 4 वर्ष के छोटे अंतराल तक आगरा मराठों के पास रहा, इस समय गाजीउद्दीन खान और मराठों के बीच मित्रता रही।


Monday, August 11, 2025

अकबर ने तोडा था आगरा का महाभारत कालीन बादलगढ किला।

Source- History and Administration of the N-W Provinces 1803-1858

 

आगरा उत्तर प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। आगरा मूल रूप से एक हिन्दू शहर है। आगरा शब्द एक हिन्दू शब्द है इसकी व्युपत्ति के बारे अनेक मत प्रचलित है। आगरा नाम प्राचीन महाराजा अग्रसेन के नाम से पडा है, ऐतिहासिक स्त्रोतों के अनुसार महाराज अग्रसेन प्रभु श्रीराम के बडे बेटे कुश के वंशज थे। अन्य स्त्रोतों के अनुसार आगरा नाम अग्रवन या अग्रवाल का एक अप्रभंश है। वर्ष 1965 ई० के आगरा गजेटियर के अनुसार आगरा एक पूर्व नाम यमप्रस्थ था, महाभारत काल में अग्रवन नाम का उल्लेख किया है। ब्रजमण्डल के 12 वनों में से अग्रवन भी एक वन था।

द्वापर युग में आगरा, मथुरा के राजा कंस का एक कारागार था, आज भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अभिलेखों में कंस गेट नाम का एक संरक्षित स्मारक है जोकि आगरा के गोकुलपुरा में स्थित है। 

अब्दुल्ला द्वारा लिखित तारीखे-दाऊदी के लेखक ने लिखा है कि आगरा मथुरा के शासक कंस के अधीन एक शक्तिशाली नगर था और आगरा किला को कंस एक कारागार के रूप में उपयोग करता था। दूसरे शब्दों में आगरा किला कंस का एक राजकीय कारागार था। सम्भवः यह हो सकता है कि कंस की राजकीय कारागार के कारण आगरा के यमप्रस्थ कहा जाता हो। 

वर्ष 1803-1858 ई० की हिस्ट्री एंड एडमिनिस्ट्रेश ऑफ नार्थ-वेस्ट प्राविंसेज की रिपोर्ट के अनुसार अकबर ने आगरा में जिसे किले के पास अपने किले का निर्माण करवाया वह महाभारत कालीन था, अकबर ने महाभारत कालीन किले को तोडने के आदेश दिये। इसी महाभारत कालीन किले को बादलगढ भी कहते थे। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में इस बात का उल्लेख किया है कि अकबर ने महाभारत कालीन किले को तोडा था। 

11 वीं सदी में महमूद गजनवी ने आगरा पर हमला कर आगरा को बर्बाद कर दिया था।

ख्वाजा मसूद बिन सद बिन सलमान ने गजनवियों के सम्मान में अनेक कवितायें लिखी है। ख्वाजा सलमान की मृत्यु करीब वर्ष 1131 ई० में हुई है। सलमान से अपनी कविताओं में लिखा है कि महमूद गजनवी के आक्रमण के समय आगरा का राजा जयपाल था। सलमान ने लिखा है कि आगरा का किला रेत के बीच एक पहाडी के समान था इसकी प्राचीरें टीलों जैसी थी, महमूद गजनवी से पहले आगरा किले पर कभी विपत्ति नहीं आयी।

वर्ष 1869 ई० में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को खुदाई में आगरा से अनेक चाँदी के सिक्के मिले जिनपर श्रीगुहिल लिखा था। मेवाड में वर्ष 750 ई० में गुहिल ने गुहिल वंश की स्थापना की। गुहिल, गुहिलोत या सिसोदिया वंश एक ही है। इन सिक्कों से यह पता चलता है कि वर्ष 750 ई० के आसपाल आगरा पर गुहिल, गुहिलोत या सिसोदिया वंश का शासन था।

आगरा एक प्राचीन हिन्दू नगर है और आगरा की ऐतिहासिक इमारतें इसी प्राचीन हिन्दू काल से सबंधित है इस पर विस्तृत अन्वेषण होना बाकी है।


Sunday, August 10, 2025

सीकरी- एक परिचय

सीकरी- एक परिचय

सीकरी जिसे आजकल हम सभी फतेहपुर सीकरी के नाम से जानते है वह आगरा से करीब 34 किलोमीटर दूर आगरा-भरतपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। 

फतेहपुर सीकरी किले पर स्थित पत्थर की पट्टिका पर सीकरी का परिचय


सीकरी एक ऐतिहासिक स्थान है। सीकरी मूल रूप से एक ग्राम था जोकि आज भी स्थित है स्थानीय लोग आजकल सीकरी ग्राम को नगर कहते है। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ० धर्मवीर शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक “अर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज” में लिखा है कि सीकरी नाम सैक से पडा। संस्कृत में सिकता या सैकतम् का अर्थ ऐसी भूमि से होता है जोकि किसी पानी के तट पर स्थित होती है। डॉ० शर्मा हलयुध कोश का उल्लेख करते हुए लिखते है कि 

“सैकतं पुलिनं द्वीपं सिकतो बालुका स्मृता।।

मध्ये द्वीपंमन्तरीपं हदस्तोयाषयो मतः।।”

जिसका अर्थ है कि  नदी, रेत या बजरी के बीच में एक टीला, एक द्वीप, एक अंतरीप या एक झील। 

सेक शब्द से इस क्षेत्र को सैकरिक्य कहा गया, सैकरिक्य शब्द का उल्लेख सीकरी में मिली वर्ष 1010 ई० जैन सरस्वती की मूर्ति पर उकेरे शिलालेख में भी मिलता है। सैकरिक्य का अपभ्रंश सीकरी हुआ।

सीकरी में एक ऐतिहासिक झील थी जिसका ऐतिहासिक अभिलेखों मे उल्लेख मिलता है वर्तमान में इस झील पर अवशेष के रूप में तेरह मोरी बांध बना हुआ है। 

वर्ष 815 ई० में सूर्यवंशी क्षत्रियों की बडगूजर शाखा के चन्द्रराज, सीकरी में आकर बसे थे। सीकरी में बसने के कारण सीकरी के बडगूजर क्षत्रियों को सिकरवार कहा गया। आगरा गजेटियर इस तथ्य की पुष्टि करता है कि सीकरी में बसने के कारण बडगूजर क्षत्रियों की शाखा को सिकरवार कहा गया। 

10 वीं शताब्दी में सिकरवार वंश में  विजयसिंह सिकरवार राजा हुए जिनके नाम से इस सीकरी के विजयपुर सीकरी कहा गया। संस्कृत में वार का अर्थ समूह से होता है इस लिए बडगूजरों का जो परिवार सीकरी में बसा उन्हें सिकरवार कहा गया अर्थात् सीकरी वालों का समूह, यह एक स्थान सूचक शब्द है। 

अबुल फजल की अकबरनामा के अनुसार अकबर ने वर्ष 1570 ई० को सीकरी की स्थापना की हाँलाकि ऐतिहासिक दस्तावेजों और पुरातात्विक अवशेषों से यह बात सत्य नहीं है कि सीकरी की स्थापना अकबर ने की।