Monday, September 1, 2025

दाहिर ने हिन्द के राजाओं के विरुद्ध अरबों की सहायता ली थी।

Source- JRASB, 1841



वर्ष 1841 ई० की एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की रिपोर्ट के अनुसार सिंध का राजा चाच था। चाच के दो बेटे थे दाहिर और दिहिर। 

दाहिर सिंध का राजा था और दिहिर बुरहमानाबाद का गवर्नर था। दिहिर एक पारिवारिक समस्या के कारण दाहिर से नाराज हो गया और अपने बड़े भाई दाहिर को सजा देने की सोची। माँ के समझाने पर दिहिर मान गया।

कुछ समय बाद चेचक से दिहिर की मृत्यु हो गयी।

एशियाटिक सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार दाहिर के राज्य के विकास को देखकर हिन्द के राजाओं ने कन्नौज के गवर्नर रणमल को दाहिर से युद्ध करने के लिए उकसाया।

हिन्द के राजाओं द्वारा दाहिर पर आक्रमण करने की खबर दाहिर पता चल गई। हिन्द के राजाओं ने दाहिर से युद्ध के लिए युद्ध क्षेत्र में डेरा डाल दिया।

दाहिर ने हिन्द के राजाओं के विरुद्ध युद्ध के लिए अरबों से सहायता माँगी और मोहम्मद उलाफी के नेतृत्व में भाड़े के 5000 सैनिक  बुलवाए।

दाहिर की सेना और अरब मोहम्मद उलाफी की सेना ने रात में हिन्द के राजाओं के कैम्प पर सोते हुए हमला कर दिया और राजा, सेनापतियों की हत्या कर दी और करीब 80,000 सैनिकों को बंदी बनाया।

इस घटना के बाद दाहिर ने 25 वर्षों तक सिंध पर राज किया

Saturday, August 30, 2025

भगवान बुद्ध का जन्म इक्ष्वाकुवंशीय सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ था।

Source- JRASB,1832 & The Life of Buddha, 1931


वर्ष 1832 ई० एशियाटिक सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बती ग्रंथ डुल-वा-झुंग-ला-मा (Dul-va-zhung-la-ma)  में भगवान बुद्ध को अयोध्या के राजा इक्ष्वाकु का वंशज बताया गया है,  डुल-वा-झुंग-ला-मा को संस्कृत में विनय उत्तर ग्रंथ कहते है।

वर्ष 1931 ई० में Edward J Thomas ने अपनी पुस्तक The Life of Buddha as Legend and History में भगवान बुद्ध को विशुद्ध क्षत्रिय कुल का बताया गया है।

वर्ष 1832 ई० एशियाटिक सोसाइटी की रिपोर्ट में भी भगवान बुद्ध को सूर्यवंशी कुल के राजा इक्ष्वाकु का वंशज बताया गया है।

भगवान बुद्ध की पूजा श्रीहरि विष्णु ने नवें अवतार के रूप में होती थी, इस विषय पर शीघ्र ही तथ्यों के साथ नया लेख प्रकाशित किया जाएगा।

Thursday, August 28, 2025

भगवान बुद्ध राजा इच्छवाकु के वंशज थे।


Source- JRASB, 1832


वर्ष 1832 ई० एशियाटिक सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बती ग्रंथ डुल-वा-झुंग-ला-मा (Dul-va-zhung-la-ma) जिसे संस्कृत में विनय उत्तर ग्रंथ कहते है। 


इस तिब्बती ग्रन्थ में शाक्य (गौतम बुद्ध) का उल्लेख है। इस ग्रंथ में गौतम बुद्ध को शाक्य कहा गया है।


इस ग्रंथ में शाक्य अर्थात भगवान बुद्ध को कौशल का निवासी बताया गया है, कौशल देश की सीमा कैलाश पर्वत तक फैली थी।


इसी ग्रंथ में शाक्य अर्थात गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध को राजा इच्छवाकु के वंशज बताया गया है, जिनका जन्म कपिलवस्तु में हुआ था।


वर्तमान में राजा इच्छवाकु के वंशज सूर्यवंशी क्षत्रिय है। राजा इच्छवाकु ही जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ है जिन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है।


Friday, August 15, 2025

बदायूँ का नीलकंठ महादेव मंदिर या जामा मस्जिद।


Source- The Jami Masjid at Badaun and Other Buildings in UP



बदायूँ उत्तर प्रदेश का जिला व शहर है।

 बदायूँ एक प्राचीन स्थान है यह पांडवों से पहले राजा भरत के समय भी अस्तित्व में था।

वर्ष 1907 ई० के बदायूँ गजेटियर के अनुसार बदायूँ का पुराना नाम बुद्धगाँव, बुद्धमउ, वेदामऊ है।

वर्ष 1879 ई० के स्टेटिकल, डिस्क्रप्टिव एंड हिस्टोरिकल एकाउंट ऑफ नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेस, बदायूँ डिस्ट्रिक्ट की अनुसार बदायूँ के बारे में मौलवी मोहम्मद करीम के अनुसार बदायूँ व बदायूँ किले की स्थापना वर्ष 905 ई० में राजा बुद्ध ने की थी। 

वर्ष 1028 ई० में महमूद गजनवी के भतीजे सालार मसूद गाज़ी ने बदायूँ पर आक्रमण किया और युद्ध में सालार मसूद गाज़ी अध्यापक मीरन मल्हन व सेनापति बुरहान कातिल मारे गए जिनके मकबरे बदायूँ में स्थित है।

वर्ष 1175 ई० में बदायूँ में राजा अजयपाल का शासन था। वर्ष 1196 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूँ पर आक्रमण किया।

अगस्त 1887 ई० को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों को बदायूँ किले के दक्षिणी दरवाजे के पास से लखनपाल का शिलालेख मिला।

यह शिलालेख 3 फ़ीट चौड़ा व 1.6 फ़ीट ऊँचा है।

इस शिलालेख में शिव के सम्मान में श्लोक लिखे गए है। इस शिलालेख की भाषा संस्कृत है व लिपि 12वीं-13वीं सदी की देवनागरी है।

लखनपाल का यह शिलालेख 23  पंक्तियों का है जिससे कन्नौज के राष्ट्रकूट वंश की जानकारी मिलती है।  प्रथम पंक्ति से सातवीं पंक्ति के वर्णन को एक सारणी में लिखा जाय तो कन्नौज के राष्ट्रकूट वंश की वंशावली बनती है। 

इस वंशावली के अनुसार चन्द्र के पुत्र विग्रहपाल हुए, विग्रहपाल के भुवनपाल, भुवनपाल के गोपालदेव, गोपालदेव के तीन पुत्र हुए त्रिभुवन व मदनपाल व देवपाल, देवपाल के पुत्र भीमपाल हुए, भीमपाल के सुरपाल, सुरपाल के दो बेटे थे अमृतपाल व लखनपाल। 

यह शिलालेख लखनपाल का है जिनकी वंशावली कन्नौज के राष्ट्रकूट वंश से जुड़ती है। महाराज जयचंद्रदेव के समय लखनपाल बदायूँ के गवर्नर थे, लखनपाल का उल्लेख आल्हा-ऊदल के साथ आता है।

लखनपाल ने बदायूँ में नीलकंठ महादेव के मन्दिर का निर्माण किया, हालाँकि नीलकंठ महादेव मंदिर का उल्लेख राजा बुद्ध व अजयपाल के विवरण में आता है जिससे साबित होता है कि नीलकंठ महादेव मंदिर बहुत प्राचीन है जिसकी देखरेख व विकास लखनपाल ने किया।

वर्ष 1202-1209 ई० के बीच शमशुद्दीन अल्तमश बदायूँ गवर्नर था, जिसने नीलकंठ महादेव मंदिर को तोड़ा और मन्दिर के अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने में किया, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मन्दिर को मस्जिद में परिवर्तित किया।

नीलकंठ महादेव मंदिर के खंभे, नक्काशीदार मूर्तियां, वास्तुशिल्प मस्जिद में देखी जा सकती है आजकल इस मस्जिद को जामा मस्जिद कहते है।

नीलकंठ महादेव मंदिर ( जामा मस्जिद) उत्तर से दक्षिण तक लगभग 280 फीट चौडा और पश्चिमी बाहरी दीवार के सामने से पूर्वी द्वार के सामने तक लगभग 226 फीट लंबी है। इस प्रकार आकार के मामले में यह जौनपुर की इमारतों को टक्कर देती है और भारत की सबसे बड़ी मुसलमान इमारतों में से एक है।

 योजना में यह एक अनियमित समांतर चतुर्भुज है, जो पूर्व की ओर सड़क के पास आते ही चौड़ा होता जाता है। आंतरिक प्रांगण पश्चिम में 176 फीट, पूर्व में 175 फीट, दक्षिण में 99 फीट 6 इंच और उत्तर में 98 फीट चौड़ा है; और केंद्र में लगभग 28 फीट वर्ग का एक टैंक है, जबकि उत्तर-पश्चिम में एक कुआं है। 

प्रांगण के पश्चिम की ओर नीलकंठ महादेव के शिवलिंग का प्रमुख स्थान है जिसे आजकल मुख्य मस्जिद कहते है, जो 75 फीट गहरा है और इमारत की पूरी चौड़ाई में फैली हुई है; यह तीन भागों में विभाजित है, केंद्रीय कक्ष 43 फीट 3 इंच वर्ग का है, जिसकी विशाल दीवारें 16 फीट मोटी हैं और एक बड़े गुंबद से छत बनी है। 

दोनों ओर एक लंबा गुंबददार कक्ष है, जिसका उत्तर में माप 78 फीट x 58 फीट और दक्षिण में 90 फीट x 58 फीट है। प्रत्येक कक्ष चूना पत्थर और ईंट से बने नौ से दस फीट की दूरी पर भारी खंभों द्वारा अनुदैर्ध्य रूप से पाँच खंडों और पार्श्व में चार खंडों में विभाजित है, जो एक बैरल छत को सहारा देते हैं।

 प्रत्येक छोर पर खिड़कियाँ हैं, और पश्चिमी दीवार में ऊपर छोटे-छोटे छिद्रों से भी प्रकाश प्रवेश करता है। केंद्रीय कक्ष आंतरिक रूप से 69 फीट ऊँचा है, लेकिन फर्श से 31 फीट की ऊँचाई पर यह अष्टकोणीय हो जाता है, जिसके किनारे मेहराबदार और धँसे हुए हैं। दीवारें पूर्व, उत्तर और दक्षिण में 18 फीट चौड़े मेहराबदार छिद्रों से छेदी गई हैं, और पश्चिम में एक गहरा मेहराब है, जिसके दोनों ओर दो छोटे नक्काशीदार स्तंभ हैं, जो स्पष्ट रूप से एक पुराने हिंदू मंदिर से लिए गए थे।

 पूर्वी मेहराब अब एक विशाल प्रोपिलॉन द्वारा दृष्टि से छिपा हुआ है, जो गुंबद को भी ढकता है। इसकी ऊँचाई लगभग 52 फीट 4 इंच और चौड़ाई 61 फीट 6 इंच है; बीच में 35 फीट 6 इंच ऊँचा एक बड़ा मेहराब है।

नीलकंठ महादेव मंदिर (कथित जामा मस्जिद) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन एक संरक्षित स्मारक है।

ब्रिटिश सरकार व भारतीय राज्यों के संबंधों की श्रेणी।

Source- JASB, 1833



वर्ष 1833 ई० की एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजों ने भारत के क्षेत्रों को अपनी संधियों के अनुसार 6 भागों में विभाजित किया था।

प्रथम श्रेणी- प्रथम श्रेणी में वो राज्य आते थे जिनके भीतरी व आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार सीधे दखल देती थी। यह राज्य अपने क्षेत्र में आक्रमण व सुरक्षा के लिए अंग्रेजों से माँग कर सकते थे। प्रथम श्रेणी के राज्य थे-


1- ओडे, जिसका क्षेत्रफल 23,923 वर्ग मील था।


2- मैसूर, जिसका क्षेत्रफल 27,999 वर्ग मील था।


3- बेरार या नागपुर, जिसका क्षेत्रफल 56, 723 वर्ग मील था।


4- त्रावणकोर, जिसका क्षेत्रफल 4,574 वर्ग मील था।


5- कोचीन, जिसका क्षेत्रफल 1,988 वर्ग मील था।


दूसरी श्रेणी- दूसरी श्रेणी में वह राज्य आते थे जिनके आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार दखलंदाजी नहीं दे सकती थी किंतु अपने हितों के संबंध में दे सकती थी, यह राज्य भीतरी व बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार पर निर्भर थे। यह राज्य थे-


1-हैदराबाद, जिसका क्षेत्रफल 88, 884 वर्ग मील था।


2- बड़ोदा, जिसका क्षेत्रफल 24, 950 वर्ग मील था।

Source- JASB,1833


तृतीय श्रेणी- तृतीय श्रेणी में वह राज्य थे जोकि अपने राज्य में सुप्रीम थे जिनके किसी कार्य में ब्रिटिश सरकार की दखलंदाजी नहीं थी, ब्रिटिश सरकार ऐसे राज्यों के साथ एक सहायक के रूप में थी। यह राज्य थे-


1- इंदौर, जिसका क्षेत्रफल 4,245 वर्ग मील था।


2- उदयपुर, जिसका क्षेत्रफल 11,784 वर्ग मील था।


3- जयपुर, जिसका क्षेत्रफल 13, 427 वर्ग मील था।


4- जोधपुर, जिसका क्षेत्रफल 34, 132 वर्ग मील था।


5- कोटा, जिसका क्षेत्रफल 4, 389 वर्ग मील था।


6- बूंदी, जिसका क्षेत्रफल 2,291 वर्ग मील था।


7- अलवर, जिसका क्षेत्रफल 3,235 वर्ग मील था।


8- बीकानेर, जिसका क्षेत्रफल 18, 060 वर्ग मील था।


9-  जैसलमेर, जिसका क्षेत्रफल 9,779 वर्ग मील था।


10- किशनगढ़, जिसका क्षेत्रफल 724 वर्ग मील था।


11- बांसवाड़ा, जिसका क्षेत्रफल 1,449 वर्ग मील था।


12- प्रतापगढ़, जिसका क्षेत्रफ़ल 1,457 वर्ग मील था।


13- डूंगरपुर, जिसका क्षेत्रफ़ल 2,005 वर्ग मील था।


14- करौली, जिसका क्षेत्रफल 1,878 वर्ग मील था।


15- सिरोही, जिसका क्षेत्रफल 3,024 वर्ग मील था।


16- भरतपुर, जिसका क्षेत्रफल 1,946 वर्ग मील था।


17-  भोपाल, जिसका क्षेत्रफल 6,772 वर्ग मील था।


18- कच्छ, जिसका क्षेत्रफल 7,396 वर्ग मील था।


19- धार व देवास, जिसका क्षेत्रफल 1,466 वर्ग मील था।


20- धौलपुर, जिसका क्षेत्रफल 1,626 वर्ग मील था।


21- रीवा, जिसका क्षेत्रफल 10, 310 वर्ग मील था।


22- दतिया, झांसी, तेरही जिसका क्षेत्रफल 16, 173 वर्ग मील था।


23- सावंतवाड़ी, जिसका क्षेत्रफ़ल 935 वर्ग मील था।


चतुर्थ श्रेणी- चतुर्थ श्रेणी में वह राज्य था जोकि अपने क्षेत्र में सुप्रीम थे जिन्हें सुरक्षा की गारंटी थी वह राज्य थे-


1- अमीर खान- (टोंक,सिरोंज,निम्बाहरा) जिसका क्षेत्रफल 1,633 वर्ग मील था।


2- पटियाला, कैटल, नाबा, जींद जिसका क्षेत्रफल 16, 602 वर्गमील था।


पंचम श्रेणी- पंचम श्रेणी में वह राज्य था जिनसे मित्रता थी, वह राज्य थे-


1- ग्वालियर, जिसका क्षेत्रफल 32,944 वर्ग मील था।

Source- JASB, 1833


षष्ठम श्रेणी- षष्ठम श्रेणी में वह राज्य थे, जिसकी सुरक्षा और आंतरिक मामलों पर पूरा नियंत्रण ब्रिटिश सरकार का था। यह राज्य थे- 


1- सतारा, जिसका क्षेत्रफल 7,943 वर्ग मील था।


2- कोल्हापुर, जिसका क्षेत्रफल 3,184 वर्ग मील था।


इस क्षेत्रों में हैदराबाद, ओडे, भोपाल व टोंक मुस्लिम शासित राज्य थे। 


सतारा, ग्वालियर, नागपुर, इंदौर, बंडा, कोल्हापुर, धार व देवास मराठा राज्य थे।


उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, बूंदी, कोटा, कच्छ, अलवर, बीकानेर, जैसलमेर, किशनगढ़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, करौली, सिरोही, रीवा, दतिया, झांसी, तेरही राजपूत राज्य थे।


मैसूर, भरतपुर, त्रावणकोर, सावंतवाड़ी, कोचीन, धौलपुर अन्य हिन्दू जातियों द्वारा शासित राज्य थे।


छोटा नागपुर, सिरगुज़र, संभलपुर, सिंहभूम, उदीपुर, मणिपुर, तंजोर, फिरोजपुर, मरीच, संगाओं, नेपानी, अकुलकोटे, सागर,नर्बुड्डा, सिक्किम अन्य राज्य थे।


ब्रिटिश सरकार व भारतीय राज्यों के व्यापारिक, राजनीतिक संबधों व संधियों के संबंध में तत्कालीन परिस्थितियों पर एक व्यापक निष्पक्ष अन्वेषण आवश्यक है।

Thursday, August 14, 2025

कन्नौज की जामा मस्जिद है सीता रसोई मंदिर।

Source- Statical, Description and Historical Account of the N-W Provinces, Farrukhabad District 



स्टेटिकल, डिस्क्रप्टिव एंड हिस्टोरिकल एकाउंट ऑफ द नार्थ-वेस्ट प्रोविन्सेस, फर्रुखाबाद डिस्ट्रिक्ट  के अनुसार कन्नौज के पुराने किले के बीच में स्थित  जामा मस्जिद मूल रूप से हिन्दू मन्दिर सीता रसोई मन्दिर है।

दरअसल पूर्वकाल में प्रभु श्रीराम के मन्दिरों को सीता रसोई मन्दिर कहा जाता था, इन मन्दिरों में तीन गुम्बद होते थे जिनमें प्रत्येक के नीचे भगवान के विग्रह को प्राण प्रतिष्ठित करने का स्थान होता था जो आज भी विद्यमान है।

इस एकाउंट के अनुसार सीता रसोई मन्दिर कन्नौज के पुराने किले के बीचोबीच एक टीले पर स्थित है। यह एक हिन्दू संरचना है जिसका मुस्लिम पूजा के लिए पुनर्विन्यास किया गया है।

जिसप्रकार कन्नौज के सीता सीता रसोई को मस्जिद में परिवर्तित किया गया ठीक उसी प्रकार जौनपुर के सीता रसोई मन्दिर को मस्जिद में परिवर्तित किया गया था। जौनपुर के सीता रसोई मन्दिर को आजकल जामा मस्जिद या बड़ी मस्जिद कहते है। ठीक इसीप्रकार अजमेर, बनारस,बदायूं, इटावा और जौनपुर के मन्दिरों को मस्जिद में परिवर्तित किया गया है।

ASI के प्रथम महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार वर्ष 1857 ई० से पहले एक मुस्लिम तहसीलदार द्वारा कन्नौज के सीता रसोई मन्दिर के हिन्दू चिन्हों व प्रमाणों को नष्ट किया गया था।

 कनिंघम ने जामा मस्जिद की दीवारों पर सीता रसोई मन्दिर के अवशेष देखे। जामा मस्जिद के खंभों में हिन्दू शिल्पकला स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

जामा मस्जिद खंभों के कमरों की बनी है जिसकी लंबाई 108 फ़ीट व चौड़ाई 26 फ़ीट है, जिसमें खम्भों की चार कतारें है, इसके सामने 95 फ़ीट चौड़ाई का एक खुला स्थान है जोकि 6 फ़ीट मोती दीवार से घिरा हुआ है।

बदायूँ की जामा मस्जिद मूल रूप से नीलकंठ महादेव मंदिर है, इटावा जामा मस्जिद मूल रूप से महेश्वर मन्दिर है, जौनपुर की अटाला मस्जिद मूल रूप से अटाला माता मंदिर है, जामा मस्जिद या बड़ी मस्जिद मूल रूप से सीता रसोई मन्दिर है।

ऐसे न जाने कितने अनगिनत मंदिर/दरगाह है जिनमें इतिहास दबा है जिनकी शिल्पकला हिन्दू शिल्पकला है जिनका उपयोग उनकी मूल प्रकृति के विरूद्ध हो रहा है। 

Tuesday, August 12, 2025

गाजीउद्दीन खान और मराठों ने मिलकर नजीबुद्दौला को खदेड़ा और आगरा पर मराठों का 4 वर्ष का छोटा कार्यकाल।


Source- History and Administration of the N-W Provinces, 1803-1858


हिस्ट्री एंड एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ नार्थ-वेस्ट प्रोविन्सेस 1803-1858 की रिपोर्ट के अनुसार मार्च वर्ष 1757 ई० में अहमद शाह अब्दाली भारत से जब लौटा तो उसने नजीबुद्दौला को अपने अधीन भारत भारत का शासन सौंप दिया।


अब्दाली का यह कार्य गाजीउद्दीन खान इमाद उलमुल्क को पसंद नहीं आया, उसने मराठों को नजीबुद्दौला के विरुद्ध मिलकर लड़ने का आमंत्रण भेजा।


मराठों की तरफ से मल्हार राव होल्कर गाजीउद्दीन खान के साथ लड़े और नजीबुद्दौला को खदेड़ दिया, जिसके बाद दिल्ली और आगरा का क्षेत्र गाजीउद्दीन खान और मराठों के पास आ गया।


मई 1757 ई० में आगरा मराठों के पास आ गया जोकि पानीपत के तीसरे युद्ध तक मराठों के पास रहा। पानीपत के तीसरे युद्ध में हार के बाद मराठे वापस दक्षिण तक सिमट गए। आगरा पर मराठों के 4 वर्ष के छोटे कार्यकाल का उल्लेख मिलता है।


पानीपत का तीसरा युद्ध 17 जनवरी वर्ष 1761 ई० को लड़ा गया था, इसप्रकार आगरा पर मई 1757 से जनवरी 1761 तक लगभग 4 वर्ष के छोटे अंतराल तक आगरा मराठों के पास रहा, इस समय गाजीउद्दीन खान और मराठों के बीच मित्रता रही।


Monday, August 11, 2025

अकबर ने तोडा था आगरा का महाभारत कालीन बादलगढ किला।

Source- History and Administration of the N-W Provinces 1803-1858

 

आगरा उत्तर प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। आगरा मूल रूप से एक हिन्दू शहर है। आगरा शब्द एक हिन्दू शब्द है इसकी व्युपत्ति के बारे अनेक मत प्रचलित है। आगरा नाम प्राचीन महाराजा अग्रसेन के नाम से पडा है, ऐतिहासिक स्त्रोतों के अनुसार महाराज अग्रसेन प्रभु श्रीराम के बडे बेटे कुश के वंशज थे। अन्य स्त्रोतों के अनुसार आगरा नाम अग्रवन या अग्रवाल का एक अप्रभंश है। वर्ष 1965 ई० के आगरा गजेटियर के अनुसार आगरा एक पूर्व नाम यमप्रस्थ था, महाभारत काल में अग्रवन नाम का उल्लेख किया है। ब्रजमण्डल के 12 वनों में से अग्रवन भी एक वन था।

द्वापर युग में आगरा, मथुरा के राजा कंस का एक कारागार था, आज भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अभिलेखों में कंस गेट नाम का एक संरक्षित स्मारक है जोकि आगरा के गोकुलपुरा में स्थित है। 

अब्दुल्ला द्वारा लिखित तारीखे-दाऊदी के लेखक ने लिखा है कि आगरा मथुरा के शासक कंस के अधीन एक शक्तिशाली नगर था और आगरा किला को कंस एक कारागार के रूप में उपयोग करता था। दूसरे शब्दों में आगरा किला कंस का एक राजकीय कारागार था। सम्भवः यह हो सकता है कि कंस की राजकीय कारागार के कारण आगरा के यमप्रस्थ कहा जाता हो। 

वर्ष 1803-1858 ई० की हिस्ट्री एंड एडमिनिस्ट्रेश ऑफ नार्थ-वेस्ट प्राविंसेज की रिपोर्ट के अनुसार अकबर ने आगरा में जिसे किले के पास अपने किले का निर्माण करवाया वह महाभारत कालीन था, अकबर ने महाभारत कालीन किले को तोडने के आदेश दिये। इसी महाभारत कालीन किले को बादलगढ भी कहते थे। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में इस बात का उल्लेख किया है कि अकबर ने महाभारत कालीन किले को तोडा था। 

11 वीं सदी में महमूद गजनवी ने आगरा पर हमला कर आगरा को बर्बाद कर दिया था।

ख्वाजा मसूद बिन सद बिन सलमान ने गजनवियों के सम्मान में अनेक कवितायें लिखी है। ख्वाजा सलमान की मृत्यु करीब वर्ष 1131 ई० में हुई है। सलमान से अपनी कविताओं में लिखा है कि महमूद गजनवी के आक्रमण के समय आगरा का राजा जयपाल था। सलमान ने लिखा है कि आगरा का किला रेत के बीच एक पहाडी के समान था इसकी प्राचीरें टीलों जैसी थी, महमूद गजनवी से पहले आगरा किले पर कभी विपत्ति नहीं आयी।

वर्ष 1869 ई० में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को खुदाई में आगरा से अनेक चाँदी के सिक्के मिले जिनपर श्रीगुहिल लिखा था। मेवाड में वर्ष 750 ई० में गुहिल ने गुहिल वंश की स्थापना की। गुहिल, गुहिलोत या सिसोदिया वंश एक ही है। इन सिक्कों से यह पता चलता है कि वर्ष 750 ई० के आसपाल आगरा पर गुहिल, गुहिलोत या सिसोदिया वंश का शासन था।

आगरा एक प्राचीन हिन्दू नगर है और आगरा की ऐतिहासिक इमारतें इसी प्राचीन हिन्दू काल से सबंधित है इस पर विस्तृत अन्वेषण होना बाकी है।


Sunday, August 10, 2025

सीकरी- एक परिचय

सीकरी- एक परिचय

सीकरी जिसे आजकल हम सभी फतेहपुर सीकरी के नाम से जानते है वह आगरा से करीब 34 किलोमीटर दूर आगरा-भरतपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। 

फतेहपुर सीकरी किले पर स्थित पत्थर की पट्टिका पर सीकरी का परिचय


सीकरी एक ऐतिहासिक स्थान है। सीकरी मूल रूप से एक ग्राम था जोकि आज भी स्थित है स्थानीय लोग आजकल सीकरी ग्राम को नगर कहते है। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ० धर्मवीर शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक “अर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज” में लिखा है कि सीकरी नाम सैक से पडा। संस्कृत में सिकता या सैकतम् का अर्थ ऐसी भूमि से होता है जोकि किसी पानी के तट पर स्थित होती है। डॉ० शर्मा हलयुध कोश का उल्लेख करते हुए लिखते है कि 

“सैकतं पुलिनं द्वीपं सिकतो बालुका स्मृता।।

मध्ये द्वीपंमन्तरीपं हदस्तोयाषयो मतः।।”

जिसका अर्थ है कि  नदी, रेत या बजरी के बीच में एक टीला, एक द्वीप, एक अंतरीप या एक झील। 

सेक शब्द से इस क्षेत्र को सैकरिक्य कहा गया, सैकरिक्य शब्द का उल्लेख सीकरी में मिली वर्ष 1010 ई० जैन सरस्वती की मूर्ति पर उकेरे शिलालेख में भी मिलता है। सैकरिक्य का अपभ्रंश सीकरी हुआ।

सीकरी में एक ऐतिहासिक झील थी जिसका ऐतिहासिक अभिलेखों मे उल्लेख मिलता है वर्तमान में इस झील पर अवशेष के रूप में तेरह मोरी बांध बना हुआ है। 

वर्ष 815 ई० में सूर्यवंशी क्षत्रियों की बडगूजर शाखा के चन्द्रराज, सीकरी में आकर बसे थे। सीकरी में बसने के कारण सीकरी के बडगूजर क्षत्रियों को सिकरवार कहा गया। आगरा गजेटियर इस तथ्य की पुष्टि करता है कि सीकरी में बसने के कारण बडगूजर क्षत्रियों की शाखा को सिकरवार कहा गया। 

10 वीं शताब्दी में सिकरवार वंश में  विजयसिंह सिकरवार राजा हुए जिनके नाम से इस सीकरी के विजयपुर सीकरी कहा गया। संस्कृत में वार का अर्थ समूह से होता है इस लिए बडगूजरों का जो परिवार सीकरी में बसा उन्हें सिकरवार कहा गया अर्थात् सीकरी वालों का समूह, यह एक स्थान सूचक शब्द है। 

अबुल फजल की अकबरनामा के अनुसार अकबर ने वर्ष 1570 ई० को सीकरी की स्थापना की हाँलाकि ऐतिहासिक दस्तावेजों और पुरातात्विक अवशेषों से यह बात सत्य नहीं है कि सीकरी की स्थापना अकबर ने की।


Thursday, July 5, 2012

मैं ढोरो को खगालता हूँ

मैं ढोरो को खगालता हूँ 
कभी इसको तो कभी उसको 
कहाँ सोया है वो राजपूताना शौर्य
एक काल था जब तुमने मात्रभूमि की 
हरियाली को अपने भगवा लहू से सींचा था 
वो सिंह दहाड़ से गौरी,गज़नी तक थर्राया था 
वो रणभूमि में म्लेछ सिरों से मात्रभूमि को पाटा था 
वो चिश्ती ने जब विश्वासघात किया तब 
माँ संयोगिता ने जोहर से सम्मान बचाया था 
वो गौरी के अहं को प्रथ्वी ने जब शब्दभेदी से तोडा था 
वो मेवाड़ी भूखे सिंहो ने खिलजी को नाच नचाया था 
माँ पधमिनी के जोहर ने उसे खाली हाथ लौटाया था 
वो रण के भूखे घायल राणा से बाबर को पसीना आया था 
वो कुम्भलगढ़ ने अकबर को मायूस लौटाया था 
इतिहास पलटता हूँ जब-जब रगों में बिजली कौध जाती है 
पर आज को देखके फफक के आंसू आते है 
जन रक्षक ही भक्षक बन बैठे तू फिर भी सोया है 
बिस्मिल के आंसू देख तू फिर भी खोया है 
म्लेचो ने मात्रभूमि को लूटा तू फिर क्यों कर्तव्य भूला है 
याद नहीं वो दिन जब सेना मुख्यालय से वी के सिंह की 
दहाड़ सुन पूरा विश्व कापा था 
१२१ करोड़ तुझे पुकार रहे फिर तू किस भ्रम में बैठा है ।
जय क्षात्र धर्म ।
जय माँ भवानी ।

Monday, June 25, 2012

अनंत काल तक चलने वाला प्राण हूँ मैं । श्वाश्वत, निर्मल ,अजन्मा सनातन हूँ मैं ।।

अनंत काल तक चलने वाला प्राण हूँ मैं ।
श्वाश्वत, निर्मल ,अजन्मा सनातन हूँ मैं ।।
ब्रह्मा के शरीर से निकला भौतिक रूप हूँ मैं।
विष्णु में बसने वाला वो प्राण हूँ मैं ।।
अनिष्ट को अवशोषित करने वाला महाकाल हूँ मैं।
अधर्म के लिए काल बनने वाला भगवा रंग हूँ मैं।।
अनंत काल तक चलने वाला प्राण हूँ मैं ।
श्वाश्वत, निर्मल ,अजन्मा सनातन हूँ मैं ।।
राम , कृष्ण के त्याग का परिणाम हूँ मैं ।
सीता की अग्नि परीक्षा की जीवित मिसाल हूँ मैं।।
गजानन को रचने वाला वो विज्ञानं हूँ मैं।
जन्म बन्धनों से मुक्ति देने वाला मोक्ष रूपी ज्ञान हूँ मैं।।
अनंत काल तक चलने वाला प्राण हूँ मैं ।
श्वाश्वत, निर्मल ,अजन्मा सनातन हूँ मैं।।
भरत की संतान का स्वाभिमान हूँ मैं।
चरक, चाणक्य, शुक्र के मस्तिष्क का तेज हूँ मैं।। 
चन्द्रगुप्त, प्रथ्वी, राणा, वीर शिवा की अमर गाथा हूँ मैं।
भूत , वर्त्तमान, भविष्य को जोड़ने वाला वो काल हूँ मैं।।
अनंत काल तक चलने वाला प्राण हूँ मैं ।
श्वाश्वत, निर्मल ,अजन्मा सनातन हूँ मैं।।

Wednesday, March 7, 2012

उत्तर प्रदेश बदल रहा है भारतीय राजनीतिक समीकरण और भविष्य



अभी हाल में ही पांच राज्यों के चुनावी नतीजे घोषित हुए परन्तु इन सब में चुनाव का मक्का उत्तर प्रदेश रहा। क्योकि भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश वो गुलकंद है जिसे खाकर प्रत्येक दिल्ली की सत्ता तक पहुच सकता है। प्राचीन काल से ही ब्राज़ील की आबादी से ज्यादा आबादी (वर्तमान ) वाले इस प्रदेश का इतिहास विशिस्ट  रहा है क्योकि जिसने भी गंगा- जमुना के दोआब पर अधिकार किया है उसने भारत पर सफलतापूर्वक राज किया है। इसी प्रदेश ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए है तथा दोनों ही मुख्या राजनीतिक पार्टियों (कांग्रेस तथा वी .जे .पी.)  का पोषक स्थान रहा है। पर धीरे-धीरे अब राजनीतिक समीकरण बदलते नज़र आ रहे है। क्योकि न तो नेहरु परिवार के रोड शो में दम दिखी और न ही वी. जे. पी. के राम मंदिर में।  दोनों ही पार्टियों में एकीकृत नेतृत्व शक्ति का आभाव है। युवराज़ यथार्थ से परे बातें नज़र करते आये तो वी. जे. पी. वो बस लगी जिसमें सबका अपना-अपना स्टेयरिंग है सबके अपने-अपने रास्ते । अब बची बसपा और सपा, २००७ में जनता  गुंडागर्दी से निजात पाने के लिए हाथी पर चढ़ गयी सोचा कुछ नया होगा तो नये के नाम पर एन एच आर एम्, मूर्तियाँ     तथा सरकारी गुंडागर्दी मिली ।अब अंत समय में वो साईकिल पर चढ़ गयी अब पांच साल क्या होगा वो समय बताएगा, पर एक बात साफ़ है क्षेत्रीय पार्टियों को स्पष्ट बहुमत के फायदे है तो नुकसान भी बहुत है। सबसे पहले मैं फायदे के बारे में बात करूँगा , उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जहाँ हर १०० किलोमीटर पर लोगो की आवश्यकताएं तथा समस्याएं अलग-अलग है जिनकी जानकारी क्षेत्रीय पार्टियों को रास्ट्रीय पार्टियों से ज्यादा है , दक्षिण में जहाँ बुंदेलखंड पानी की कमी से झूझता है वही पूर्वोत्तर क्षेत्र पानी में डूबा रहता है ,दक्षिण-पूर्व  में जहाँ नक्सलवाद है वही उत्तर-पश्चिम में नये विकास के लिए जमीन की कमी। जो इन दुखती रगों को पकड़कर गाना शुरू करता है जनता उसी में अपना भविष्य तलाशती है। सत्ता में आने से पहले ये बातें महत्वपूर्ण होती है तथा सत्ता में आने के बाद आधारहीन, क्योकि समस्या से निबटने तथा विकास करने के लिए, मेहनत करनी होती है और विलासितापूर्ण जीवन त्यागना पड़ता है। जो भी पार्टी इन समस्याओ से निबट कर विकास के रास्ते पर चलेगी उसे ही स्पष्ट बहुमत मिलेगा और चिर स्थायी होगी । पांच साल की मेहनत अगले बीस साल का बीमा देगी । बिहार और गुजरात इसके उदाहरण है। स्पष्ट बहुमत यह सिद्ध करता है है कि जनता चाहती है कि उस पर कोई समर्थ व्यक्ति ही राज करे।
अब बात करते ही स्पष्ट बहुमत से होने वाले नुकसान की। इन क्षेत्रीय पार्टियों से रास्ट्र को फायदा नाम मात्र को परन्तु नुकसान थोक के भाव होता है। अगर इतिहास पर नज़र डाली जाय तो मौर्या वंश (चन्द्रगुप्त से अशोक तक ) तथा मुग़ल वंश (अकबर से औरंगजेब तक ) भारत ने विकास किया है क्योकि इन राजाओ के समय एक केंद्रीय सक्ति स्थापित थी। इनके बाद राजनीतिक अस्थिरता आयी जिसका परिणाम विदेशी आक्रमण हुआ और गौरी , गजनवी और अंग्रेजो ने इसका फायदा उठाया। इससे एक बात साफ़ हो जाती है कि देश के बहुमुखी विकास के लिए  राजनीतिक स्थिरता कितनी आवश्यक है। अब बात करते है रास्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों की। रास्ट्रीय मुद्दे वो मसले होते है जो पुरे रास्ट्र से जुड़े होते है और जिनका असर पुरे रास्ट्र पर होता है जैसे विज्ञानं-तकनीकी ,सैन्य क्षमता विकास , आर्थिक उदारीकरण , विदेश नीति इत्यादि । रास्ट्रीय मसलो में थोड़ी सी चुक होने पर पूरे रास्ट्र को खामियाजा भुगतना पड़ता है। क्षेत्रीय मुद्दे वे मसले होते है तो रास्ट्र के किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े होते है जिनकी कुछ अपनी सामाजिक, आर्थिक या अन्य समस्याएं होती है। क्षेत्रीय मुद्दे रास्ट्रीय मुद्दों के लिए अधिक घातक होते है क्योकि क्षेत्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय भावनाओ को भड़काकर रास्ट्रीय मुद्दों से ध्यान खीचती है और यदि केंद्र सरकार क्षेत्रीय पार्टियों के सपोर्ट से चल रही है तो महत्वपूर्ण रास्त्रियो मुद्दों को निबटाने में रोड़ा बनती है तथा रास्ट्रीय अस्थिरता तथा अशांति  उत्पन्न करती है जिसकी ताक में सभी दुश्मन देश बैठे रहते है।
उपरोक्क्त बातो से स्पष्ट हो जाता है कि दोनों रास्ट्रीय पार्टियों तथा जनता को बैठ कर सोचना होगा कि हम किस ओर जा रहे है तथा हम अपने बच्चो को कैसा भारत देकर जायेगें ? क्या गौरी,गजनवी या अंग्रेजो फिर दोहराया जाएगा ? क्या चीन का युद्ध फिर दोहराया जाएगा ? क्षेत्रीय पार्टियों को स्पष्ट बहुमत मिलना कुछ इसे ही निकट भविष्य की ओर इशारा कर रहा है ।
Written by  -
  अजय सिंह
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jems007mbond@gmail.com
             

Monday, March 5, 2012

आजकल सरकार को बी टी सरसों  नाम का भूत सवार  है जिसकी खेती के लिए राजस्थान में तीन जिलो में विरोध के वावजूद मंजूरी दे दी है इन गधो पर यूरोप का रंग चडा रहता है ये इस छोटी सी बात को समझ पाते कि यूरोप  में कुकुरमुत्तो की तरह देश है जिनके पास खेती करने के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है इसलिए ऐसी खुराफातें करना उनकी मजबूरी है पर भारत में इसकी कोई जरूरत नहीं पर ऑक्सफोर्ड के चौकीदार ये समझेगें नहीं , उपजाऊ जमीन पर हाई टेक सिटी बनाते है और रेगिस्तान बी टी खेती की बात करते है पता नहीं ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में कैसे उल्लू बैठे है जो इन जैसे गधो को डिग्री दे देते है और यहाँ आके ये छाती पीट-पीट के प्रलाप करते है हाय टेकनोलोजी  - हाय टेकनोलोजी। हम जैसे ताजी रोटी पका कर खाने वाले लोग इन्हें पिछड़े लगते है और यूरोप वाले जो , पाव रोटी और डबल रोटी जो आटे को सडा कर बनाये जाते है उन्हें ये उल्लू काबिल समझते है। एक बेवकूफ गया नहीं यूरोप या अमेरिका एक नया भूत लेकर आ जाता है फिर हमारा टाइम ख़राब करता है। इन गधो को गधा बोलो तो इन्हें मिर्च लगना शुरू हो जाती है कोई काम के टाइम पे पोर्न मूवी देखता है तो कोई चिघाड-चिघाड के आरक्षण को मागंता है फिर उनकी अम्मा बोलती है कि ये गधे  कम चिघाड़ते तो हमें ज्यादा वोट मिलते, पता नहीं ये सब कीड़े कौन सी दुनिया में रहते है जो इन्हें कुछ पता ही नहीं ,एक दो साल के बच्चे की तरह रोते है गलती करके  न इनके घरवाले या बच्चे कुछ कहते है कि भाई तुम्हें तो अपनी इज्ज़त की चिंता नहीं तो हमारी की कर लो।          
जिस प्रकार स्पेन नाम के नासूर ने नेपोलियन बोनापार्ट को बर्बाद कर दिया और दक्षिण भारत ने औरंगजेब को बर्बाद कर दिया ठीक उसी प्रकार कश्मीर नाम के फोड़े ने पकिस्तान को बर्बाद कर दिया है , पकिस्तान ने सबसे पहले पूर्वी पकिस्तान जो आज का बंगलादेश है को खोया और अब बलूचिस्तान की बारी है, और एक दिन पकिस्तान पूरी दुनिया के लिए इतिहास बन जाएगा ।

Saturday, February 4, 2012

एक भारतीय सियाचिन सेनिक का अपनी मरी हुई माँ को लिखा हुआ खत-

प्रणाम माँ,
"माँ" बचपन में मैं जब भी रोते रोते सो जाया करता था तोह तू चुपके से मेरे सिरहाने खिलोने रख दिया करती थी और कहती थी की ऊपर से एक परी ने आके रखा है और कह गई है की अगर मैं फिर कभी रोया तोह खिलोने नहीं देगी! लेकिन इस मरते हुए देश का सेनिक बनके रो तोह मैं आज भी रहा हूँ पर अब ना तू आती है और ना तेरी परी! परी क्या....... यहाँ
5,753  मीटर ऊपर तोह परिंदा भी नहीं मिलता!
मात्र 14 हज़ार के लिए मुझे कड़े अनुशासन में रखा जाता है, लेकिन वोह अनुशासन ना इन भ्रष्ट नेताओं के लिए है और ना इन मनमौजी देशवासियों!
रात भर जगते तोह हम भी है लेकिन अपनी देश के सुरक्षा के लिए लेकिन वोह जगते है "लेट नाईट पार्टी" लिए!
इस -12 डिग्री में आग जला के अपने को गरम करते है लेकिन हमारे देश के नेता हमारे ही पोशाको, कवच, बन्दूको, गोलियों और जहाजों में घोटाले करके अपनी जेबे गरम करते है!
आतंकियों से मुठभेड़ में मरे हुए सेनिको की संख्या को न्यूज़ चैनल नहीं दिखाया जाता लेकिन सचिन के शतक से पहले आउट हो जाने को देश के राष्टीय शोक की तरह दशाया जाता है!
हर चार-पांच सालो ने हमे एक जगह से दुसरे जगह उठा के फेंक दिया जाता है लेकिन यह नेता लाख चोरी करले बार बार उसी विधानसभा - संसद में पहुंचा दिए जाते है!
मैं किसी आतंकी को मार दूँ तोह पूरी राजनितिक पार्टियां वोट के लिए उसे बेकसूर बना के मुझे कसूरवार बनाने में लग जाती है लेकिन वोह आये दिन अपने अपने भ्रष्टाचारो से देश को आये दिन मारते है, कितने ही लोग भूखे मरते है, कितने ही किसान आत्महत्या करते है, कितने ही बच्चे कुपोषण का शिकार होते है लेकिन उसके लिए इन नेताओं को जिम्मेवार नहीं ठहराया जाता?
निचे अल्पसंख्यको के नाम पर आरक्षण बाटा जा रहा है लेकिन आज तक मरे हुए शहीद सेनिको की संख्या के आधार पर कभी किसी वर्ग को आरक्षण नहीं दिया गया?

मैं दुखी हूँ इस मरे हुए संवेदनहीन देश का सेनिक बनके! यह हमे केवल याद करते है 26 जनवरी को और 15 अगस्त को! बाकी दिन तो इनको शाहरुख़, सलमान, सचिन, युवराज की फ़िक्र रहती है!
हमारी स्तिथि ठीक वैसे ही पागल किसान की तरह है जो अपने मरे हुए बेल पर भी कम्बल डाल के खुद ठंड में ठिठुरता रहता है!

मैंने गलती की इस देश का रक्षक बनके!
तू भगवान् के जाएदा करीब है तोह उनसे कह देना की अगले जनम मुझे अगर इस देश में पैदा करे तोह सेनिक ना बनाए और अगर सेनिक बनाए तोह इस देश में पैदा ना करे!
यहाँ केवल परिवार वाद चलता है, अभिनेता का बेटा जबरजस्ती अभिनेता बनता है और नेता का बेटा जबरजस्ती नेता!

प्रणाम-
लखन सिंह (मरे हुए देश का जिन्दा सेनिक)!
भारतीय सेनिक सियाचिन

Friday, February 3, 2012

 मुस्लिम   आरक्षण के मुद्दे पर एक जुट हो रहे है पर कभी भ्रस्टाचार, और पकिस्तान के खिलाफ कभी खुल के एक जुट होकर सामने नहीं आते है। मुस्लिमों को पकिस्तान और बंगलादेश दिया जा चुका है अब उन्हें क्या चाहिए पूरा भारत । क्या माननीय ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब की राय ली है अलीगढ मुस्लिम विश्वविधालय और दारुल उलम , देबबंद ने। आज़ादी से पहले ये दोनों संस्थान एक दूसरे के विरोधी थे आज चोली दामन के साथ की बात करते है।  कहाँ है वो मुस्लिम जो बंगाल विभाजन के विरुद्ध सन १९०५ ई. जो हिन्दुओं के साथ सरकार की  फूट डालने की कोशिश के विरुद्ध   में एक हो गये थे ।  क्यों जब भी कोई आतंकवादी घटना  होती है तो हमेशा मुस्लिम नाम ही सामने आते है । क्या ये देश आपका नहीं है ? इन बातों से सिर्फ यही सिद्ध  होता है की वो इस  देश को अपना नहीं मानते । क्यों देश के कोई आन्दोलानो में मुस्लिमों की की कोई भागीदारी खुल के सामने नहीं आती है। क्या देश भक्ति का जज्बा उनके अंदर नहीं है  वो नहीं चाहते है की भारत में हर धर्म का व्यक्ति बिना भेदभाव के मिल के रहे । क्या इस्लाम देश के लिए और मानवता के लिए कोई फ़र्ज़ निभाने को नहीं बताता है ।  जब उनकी  तलवारे  दंगो में दूसरे धर्म के लोगो को मारने के लिए है उठ सकती है तो क्यों ये तलवारे देश के लिए नहीं उठती है क्यों ये तलवारे मानवता की रक्षा के लिए नहीं उठती है।महान सम्राट अकबर भी एक मुस्लिम था ।क्यों सूफी पंथ का विकास नहीं हुआ । मोईनुद्दीन चिस्ती का यही सन्देश था , क्या ? क्यों धर्म की खायी दिन-प्रतिदिन बढ रही है  क्यों मुस्लिम युवा धार्मिक एकता के लिए आवाहन नहीं करते। क्यों जब भी देश की बात आती है तो वे औरों से कई कदम पीछे दिखते है । आप एक बार आगे आकर आवाहन तो करो फिर देखना फिर देखना हर धर्म का व्यक्ति आपके साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा  होगा  ।

Thursday, February 2, 2012

वो कहते है कि भारत के लोग असभ्य थे
हमने भारत वालो को सभ्य बनाया ,
सन १७५७ ई. में उन्होंने हमारी
संस्कृति  को  निम्न दर्जे का  बोला
पर ७५०० वर्ष पहले सिन्धु सभ्यता
विश्व कि सर्वाधिक विकसित सभ्यता थी
खुद साम्राज्यवादी होकर हमें लोकतंत्र का
पाठ पदाते थे जब कि सिधु सभ्यता , वैदिक काल
, मौर्या काल, गुप्त काल  ये सब लोकतंत्र आधारित
राज्य थे ।
वो कहते है कि गैलिलियो ने विमान बनाया पर
प्रभु राम तो लंका विजय से पुष्पक विमान से अयोध्या
वापस आए ।
वो कहते है कि १७ वी शताब्दी  में न्यूटन
ने गुरुत्त्वकर्षण कि खोज कि पर आर्यभट ने तो
1500 वर्ष पहले इसकी खोज कर दी ।
वो कहते है कि गणित में वो पंडित है
उनकी प्रौधोगिकी सबसे उन्नत है
पर शून्य क़ी खोज आर्यभट ने गुप्त काल में क़ी  और पाई
का मान ३.१४१६ निकाला तब जा के उन्हें गिनती आई ।
वो कहते है कि उनकी मिसाइले अचूक है पर
प्रथ्विराज चौहान ने तो १२०० ई. में मुहम्मद गोरी को
शब्दभेदी वाण से काल के गाल में भेज दिया था ।
वो कहते है क़ी वो संम्पन्न  है  फिर क्यों दुनिया को
व्यापारी के भेश धर के लुटा ।
वो कहते है कि वो संस्कृति के रक्षक है
पर क्यों उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका क़ी इंका, माया  और एजटेक,
और अफ्रीका क़ी सभ्यताओं का समूल नाश कर दिया ।
वो कहते है क़ि उन्हें मानवता   क़ी चिंता है तो फिर क्यों
अफ्रीका के लोगो को दास बना के अमरीका भेजा ।






Wednesday, February 1, 2012

ज़रा सोचिये 
देश का विभाजान , हिन्दू - मुस्लिम दंगे , लाल बहादुरशास्त्री   की रहस्मय मौत , पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर ,पूर्वोत्तर राज्यों की समस्या , नक्सल वाद , चीन का युद्ध ,२ जी , कोमनवेअल्थ , माइनिंग (अभी आने वाला है लगभग २५ लाख करोड़ ) घोटाला इत्यादि ये सब कांग्रेस की देन  है। यदि उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार हो तो  कांग्रेस क्या क्या कर  सकती है ।
जागो - जागो मतदाता जागो , भ्रस्टाचार की रेल गाड़ी होर्न बजा रही है ।


Tuesday, December 13, 2011

Mississippi River

The Mississippi River is the largest river system in North America.
Flowing entirely in the United States, this river rises in western
Minnesota and meanders slowly southwards for 2,530 miles (4,070 km) to the Mississippi River Delta at the Gulf of Mexico. With its many tributaries, the Mississippi's watershed drains all or parts of 31
U.S. states between the Rocky and Appalachian Mountains and even reaches into southern Canada. The Mississippi ranks fourth longest and tenth largest among the world's rivers.

Native Americans lived along the Mississippi and its tributaries. Most were hunter-gatherers or herders, but some such as the Mound builders formed prolific agricultural societies. The arrival of Europeans in the 1500s forever changed the native way of life as first explorers, then settlers, ventured into the basin in increasing numbers. The river served first as barrier – forming borders for New Spain, New France, and the early United States – then as vital transportation artery and communications link. In the 19th century, during the height of Manifest Destiny, the Mississippi and several western tributaries, most notably the Missouri, formed pathways for pioneers partaking in the western expansion of the United States. Formed from thick layers of this river's silt deposits, the Mississippi River Valley is one of the most fertile agricultural regions of the country and as a result came the rise of the river's storied steamboat era. During the American Civil War, the Mississippi's capture by Union forces marked a turning point towards victory because of this very importance as a route of trade and travel, not least to the Confederacy. Because of substantial growth of cities, and the larger ships and barges that have supplanted riverboats, the decades following the 1900s saw massive engineering works applied to the river system, such as the often in-combination construction of levees, locks and dams.
Since modern development of the basin began, the Mississippi has also seen its share of pollution and environmental problems – most notably large volumes of agricultural runoff, which has led to the Gulf of
Mexico dead zone off the Delta. In recent years, the river has shown a steady shift towards the Atchafalaya River channel in the Delta; a course change would prove disastrous to seaports such as New Orleans.
A system of dikes and gates has so far held the Mississippi at bay, but due to fluvial processes the shift becomes more likely each year.

Tuesday, November 22, 2011

भगवा सफ़ेद हरा , जीवन चक्र मेरा |

भगवा सफ़ेद हरा , जीवन चक्र मेरा |
कर्म सत्य धरती माँ , इन्ही में मैं पला |
भारतीय मैं जना, भारतीय ही जला |
भारतीय मैं जियूं, सदा भारतीय रहूँ |
भगवा सफ़ेद हरा , जीवन चक्र मेरा |